निर्देशक: अनुराग बसु
कलाकार: आदित्य रॉय कपूर, सारा अली खान, पंकज त्रिपाठी, अनुपम खेर, फातिमा सना शेख, अली फज़ल, नीना गुप्ता
शैली: ड्रामा, रोमांस
कहानी की झलक
‘मेट्रो… इन दिनों’ साल 2007 में आई हिट फिल्म Life in a… Metro का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जा सकता है। अनुराग बसु ने इस बार भी महानगरों में रहने वाले आम लोगों की असाधारण कहानियों को पर्दे पर उतारा है। इस फिल्म में कई अलग-अलग किरदारों की ज़िंदगियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हैं – प्यार, अकेलापन, रिश्तों की उलझन और आत्म-संघर्ष की भावनाएँ फिल्म की आत्मा हैं।
“मेट्रो इन दिनों” की कहानी किसी एक पात्र पर केंद्रित नहीं है, बल्कि यह एक एंथोलॉजी (कई कहानियों का संगठित रूप) है, जिसमें अलग-अलग किरदारों की ज़िंदगियाँ एक-दूसरे से टकराती हैं, जुड़ती हैं और फिर अपने-अपने रास्तों पर निकल जाती हैं। अनुराग बसु की इस फिल्म में मुख्य रूप से 5 से 6 कहानियाँ समानांतर रूप से चलती हैं।
2. अनुपम खेर और नीना गुप्ता की भावुक कहानी
इस कहानी में दिखाया गया है कि बुज़ुर्ग भी अकेलेपन से जूझते हैं। उनके रिश्तों को अक्सर परिवार और समाज नजरअंदाज़ कर देते हैं।
-
एक पार्क में मुलाकात से शुरू हुई यह दोस्ती धीरे-धीरे जीवन का सहारा बन जाती है।
-
दोनों अपने-अपने अतीत के दर्द को साझा करते हैं और वर्तमान में साथ की गर्माहट को महसूस करते हैं।
यह कहानी बहुत कोमल और गहरी है, जो बताती है कि इंसान को किसी भी उम्र में अपनापन चाहिए — केवल जीने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने के लिए।
3. फातिमा सना शेख और अली फज़ल की जटिल दुनिया
इनकी कहानी आधुनिक रिश्तों की गहराइयों को उजागर करती है।
-
फातिमा का किरदार आत्मनिर्भर महिला का है, जो अपने करियर में सफल है लेकिन रिश्तों में भरोसे की कमी से जूझ रही है।
-
वहीं अली का किरदार ऐसा युवक है जो अपने टूटे हुए अतीत से उबरने की कोशिश कर रहा है।
दोनों की मुलाकात एक ऑनलाइन डेटिंग ऐप से होती है, लेकिन जैसे-जैसे रिश्ता आगे बढ़ता है, अतीत की परछाइयाँ सामने आने लगती हैं। यह ट्रैक बताता है कि किस तरह आज का प्यार इंस्टेंट हो गया है लेकिन विश्वास धीरे-धीरे बनता है।
4. एक पिता और बेटी के बीच की खट्टी-मीठी कहानी
पंकज त्रिपाठी का किरदार एक सिंगल फादर का है जो अपनी बेटी के लिए सब कुछ छोड़ चुका है।
-
वह अपनी बेटी को एक अच्छा जीवन देना चाहता है, लेकिन जेनरेशन गैप की वजह से दोनों के बीच टकराव रहता है।
-
बेटी अपने जीवन में आज़ादी चाहती है, जबकि पिता उसे सुरक्षा देना चाहता है।
यह कहानी पिता-पुत्री के रिश्ते की मासूमियत और भावनात्मक जटिलता को बखूबी दर्शाती है।
कहानी का मूल भाव
हर कहानी एक ही थीम के इर्द-गिर्द घूमती है:
“प्यार और अकेलेपन के बीच की वो जगह, जहाँ इंसान खुद को ढूंढ़ता है।”
हर किरदार किसी न किसी रूप में प्यार की तलाश में है — चाहे वह नया प्यार हो, भूला हुआ रिश्ता, या फिर खुद से जुड़ाव। फिल्म हमें यह एहसास दिलाती है कि हम सब एक-दूसरे से ज्यादा अलग नहीं हैं — हमारी भावनाएँ, हमारी ज़रूरतें और हमारी कहानियाँ एक-दूसरे से बहुत मिलती-जुलती हैं।
कहानी मुंबई जैसे शहर की है, जहाँ लोग भले ही एक-दूसरे के बेहद करीब रहते हों, लेकिन भावनात्मक रूप से कई बार बहुत दूर होते हैं। हर किरदार का एक अलग संघर्ष है — कोई अपने अधूरे रिश्तों से जूझ रहा है, कोई नए प्यार की तलाश में है, कोई बूढ़ा होकर भी companionship चाहता है।
फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि यह आज के शहरी जीवन की सच्ची तस्वीर पेश करती है। चाहे वह ऑफिस में व्यस्त रहने वाले कपल हों, जो एक-दूसरे से बात करने का समय नहीं निकाल पाते, या बुजुर्ग जो उम्र के अंतिम पड़ाव में भी अकेलेपन से लड़ रहे हैं — हर किरदार दर्शकों को कहीं न कहीं खुद से जोड़ता है।
बड़े शहरों की भीड़ में हर कोई अपने सपनों, डर और चाहतों के साथ जी रहा है। Metro In Dino यही बात बेहद सादगी से दर्शाता है — बिना ज़्यादा मेलोड्रामा के।
इस फिल्म में प्यार को सिर्फ एक रोमांटिक भावना की तरह नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी, एक समझ और एक कम्पैनियनशिप के रूप में दिखाया गया है। आज के युवाओं के रिश्तों में जो असमंजस और अनिश्चितता होती है, उसे फिल्म ने बहुत सटीकता से दिखाया है।
फिल्म के डायलॉग्स भी काफी प्रभावशाली हैं — सीधे दिल से निकले हुए और जीवन के करीब। उदाहरण के लिए एक सीन में एक किरदार कहता है:
“प्यार अब इंस्टेंट कॉफी जैसा हो गया है, पर कभी-कभी धीमी आंच वाला चाय जैसा होना चाहिए…”
ऐसे संवाद फिल्म को भावनात्मक गहराई देते हैं।
फिल्म की खास बात यह है कि इसमें एक साथ कई कहानियां चलती हैं, लेकिन सबका मूल संदेश एक ही है — हम सब प्यार, अपनापन और समझ की तलाश में हैं। हर कहानी एक अलग उम्र, सोच और अनुभव से जुड़ी है — इससे फिल्म हर वर्ग के दर्शकों से कनेक्ट करती है।
-
आदित्य रॉय कपूर और सारा अली खान की जोड़ी ताज़ा महसूस होती है। दोनों ने अपनी भूमिका को सहजता और सच्चाई से निभाया है।
-
पंकज त्रिपाठी हमेशा की तरह अपने अभिनय से कहानी में गहराई लाते हैं।
-
नीना गुप्ता और अनुपम खेर की केमिस्ट्री देखना सुकून देने वाला अनुभव है — उम्र के उस पड़ाव पर भी प्यार और companionship को तलाशना फिल्म का सबसे खूबसूरत पक्ष है।
-
अली फज़ल और फातिमा सना शेख की स्टोरीलाइन भावुक कर देती है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
प्रीतम का संगीत एक बार फिर से जादू बिखेरता है। खासकर टाइटल ट्रैक “Metro In Dino” आपके दिल को छू जाता है और पूरी फिल्म के मूड को सेट करता है। सिनेमैटोग्राफर ने मुंबई शहर को सिर्फ एक लोकेशन नहीं, बल्कि एक किरदार की तरह दिखाया है।
फिल्म की खूबी यह है कि हर किरदार को एक पूरी दुनिया के रूप में पेश किया गया है। उदाहरण के लिए, फातिमा सना शेख का किरदार एक वर्किंग वुमन का है, जो समाज की अपेक्षाओं और अपनी आज़ादी के बीच उलझी हुई है। उसकी चुप्पी और संघर्ष उन कई महिलाओं की कहानी को दर्शाती है जो बाहर से मजबूत दिखती हैं, लेकिन अंदर ही अंदर अकेली होती हैं।
अली फज़ल एक ऐसे युवक का किरदार निभा रहे हैं जो रिश्तों से डरता है, क्योंकि उसके अतीत ने उसे भरोसा करना सिखाया ही नहीं। ये किरदार कहीं न कहीं दर्शकों को अपने भीतर झाँकने पर मजबूर करते हैं।
फिल्म में मुंबई शहर को सिर्फ एक बैकड्रॉप की तरह नहीं, बल्कि एक जीवंत पात्र की तरह इस्तेमाल किया गया है। लोकल ट्रेनें, ट्रैफिक, अकेलेपन से भरे कॉफी शॉप्स, भागती-दौड़ती ज़िंदगी — ये सब मिलकर एक भावनात्मक माहौल बनाते हैं।
अनुराग बसु ने इस शहर की भीड़ में बसे अकेलेपन को बहुत सुंदरता से कैमरे में कैद किया है। एक तरफ चमकती लाइट्स हैं, तो दूसरी ओर उस रौशनी में खोए हुए सपने।
समय के साथ चलती फिल्म
फिल्म 2025 की दुनिया को दर्शाती है, जहाँ लोग डिजिटल हैं लेकिन दिल से कनेक्ट नहीं हैं। व्हाट्सएप चैट्स, इंस्टाग्राम लाइफ और असली अकेलापन — ये सभी आधुनिक जीवन की हकीकतें फिल्म में बखूबी दिखाई गई हैं।
यह फिल्म न तो पुराने ज़माने की रोमांटिक फिल्मों की तरह है, न ही पूरी तरह मॉडर्न — बल्कि यह एक संतुलन है जो आज की पीढ़ी के अनुभवों को सटीकता से पकड़ती है।
फिल्म के खास संवाद (Dialogues)
कुछ डायलॉग्स फिल्म को यादगार बना देते हैं:
-
“अकेलापन तब नहीं लगता जब कोई साथ न हो… बल्कि तब लगता है जब कोई साथ होकर भी दूर हो।”
-
“हर रिश्ता नया होता है, बस हम उसमें पुराने घाव ढूंढते हैं।”
-
“हम सब मेट्रो के मुसाफ़िर हैं — जुड़ते हैं, बिछड़ते हैं, और फिर भी सफर जारी रखते हैं।”
फिल्म का संदेश
‘मेट्रो इन दिनों’ का सबसे बड़ा संदेश है: प्यार जरूरी है, लेकिन समझ और वक्त उससे भी जरूरी है। रिश्तों को वक्त देना, संवाद करना, और सामने वाले की भावनाओं को समझना — यही आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
यह फिल्म रिश्तों को लेकर हमारे नज़रिए को बदल सकती है। शायद देखने के बाद आप भी अपने किसी पुराने रिश्ते को फिर से जीने की कोशिश करें।
अनुराग बसु की निर्देशन शैली
अनुराग बसु की खासियत है — जटिल कहानियों को सरल भावनाओं के जरिए प्रस्तुत करना। उन्होंने फिर से साबित किया है कि कैसे अलग-अलग ट्रैकों को एक साथ जोड़ा जा सकता है और फिर भी हर ट्रैक को गहराई दी जा सकती है।
फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि समाज को भी आइना दिखाती है — कैसे आज के रिश्ते वर्चुअल हो गए हैं, कैसे अकेलापन मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, और कैसे बुजुर्गों की भावनाओं को नजरअंदाज़ किया जाता है।
यह फिल्म दर्शकों को अपने आसपास के रिश्तों की कद्र करने की प्रेरणा भी देती है। शायद फिल्म देखकर कई लोग अपने माता-पिता या पार्टनर के साथ बैठकर दिल की बात करने की पहल करें।